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Showing posts from October, 2015

मौत का चद्दर !

लाखों मौत का दामन थाम लेते है रोज़ाना पर जब मौत किसी अपने को छूम के निकलती है तब एहसास होता है कि आखिर कितना कम जिए है हम कि कितने ही सपने और मकाम हासिल करना अब भी बाकी है मौत का न कोई सही उम्र है न कोई सही वक़्त पर फिर भी न जाने हम किस भरोसे पे ऐसे जीते है की कल का सवेरा होगा, और कल फिर एक सपना पूरा होगा जैसे ज़िन्दगी कोई ऐसी जुग्नू है जो हमेशा चमकेगी सूरज की पेहली किरण आज ले आया किसी अपने की मौत की खबर फिर सोच में पड़ गया मन की ये उम्र तो नहीं थी उसके सबसे दूर जाने की आज फिर निकल पड़ा सोच अपनी गलियों में कि क्या कभी ऐसा वक़्त आएगा जब हम केह सके हाँ जी चुके हम अपनी ज़िन्दगी , हाँ जी चुके हम सारे सपने अब नहीं बाकी कुछ इस ज़िन्दगी में , अब चलो ओड लें मौत का चद्दर हम ... -सरिता  Dated: 4 Oct 2015 (Dedicated to a colleague and friend I knew once. Got a message in the morning that he passed away in a Road accident. Rest in Peace Sandeep GS.)