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Showing posts from February, 2013

Someday Time Stops and You Stop Flying!

Sometimes I wonder how time flies and how I flew along with it. It looks like yesterday when I flew out of my little nest into this limitless azure sky. I have been flying since then. My wings have grown stronger over the years beating against the windy storms during my journey. Soaring into the sky, I had a different feeling, a feeling that I never knew of when I was dwelling in my nest with my loved ones. I have flew over different gardens, in different seasons, meeting and leaving behind many friends and loved ones. Now I build my own nest wherever I go, live there and fly again into new place. People say that someday you have to return to your nest; someday one stops and looks back; someday time stops and you stop flying. The way we look at things, at people, at emotions, at relations - everything changes with time. Our needs, our interests, our likes-dislikes transform as we continue to discover ourself. The road to destiny is in finding oneself - but I hardly have met of a

कातिल नहीं है वो ।।

हँसते हँसते चुप हो जाते है पलकों पे एक अश्क की मोती आ रूकती है अपनों के साथ भी दिल को लगता पराया सा है भीड़ में भी कभी हो जाते तनहा हम है ।। कातिल नहीं वो लेकिन कातिल से कम भी तो नहीं मौत तो नहीं हुई है पर क़त्ल ज़रूर हुआ है उसने जीने की तमन्ना का गला घोंटा है हमसे न पूछो की वो मुजरिम है की नहीं ।। मुजरिम नहीं करार सकते उसे क्यूंकि सज़ा हम दे नहीं सकते उसे उसपे आंच आये ऐसा चाहता नहीं ये दिल खुश रहे बस यही दुआ करता है ये दिल ।। ज़िन्दगी का यह कैसा मज़ाक है खुदा ने मुहोब्बत जैसा गुनाह बनाया क्यूँ क्या सिखाना चाहता था वो इंसान को की मरकर भी कैसे जिया जाता है?? उसीकी यादों की गलियों में बार बार दिल मुड़ता है जानता है गुमराह होगा वो जानता है गम की अंधेरों में डूबेगा वो पर फिर भी गलती दोहराने पे मजबूर है वो ।। दर्द दरिया सा समाया रहता है इस दिल में पर मुस्कुराने की ख़ता करने पे मजबूर है अपना उसे कह नहीं सकते और पराया वो कभी होगा नहीं ।। चलो अब गुनाह कर ही लिया है तो सज़ा ए गम भी भुगत लेंगे हम जीकर मरने की ख़ता कर ही ली है तो मरकर जीने की कोशिश भी कर लेंगे हम ।। -स

इन यादों को यकीन है ||

शीशे की दरारों में फसे सूरज की किरणे फर्श पे जमी हुई कीचड़ की दाग हर चीज़ पे धूल का पर्दा बिछा हुआ जैसे ओडी हो यादों की घूँघट इन सबने || मानो जैसे हर दीवार केहती कोई कहानी है जैसे वो टूटा हुआ आइना छुपाती किसीकी जवानी है उस झूले में जैसे दबी किसीकी मुस्कराहट है सब कैद है बस इंतज़ार में एक उसके || वो सावन जब भीगते थे घंटो तक आँगन में भागते थे एक दूसरे को छेड़ते पूरे घर में अब न वो बारिश रही न वो मासूम छेड़कानी बस रह गयी है तो ये फर्श पे जमी कीचड की दाग || वो आइना जिसने निहारा उनका खूबसूरत साथ जो शर्माके नज़रे झुकाती जब वो पास उसके जाता बालो में गजरा लगाता, काजल का टिका लगाता इसे भी इंतज़ार है फिर से उस जवान महोब्बत का || वो झूला आज भी डूबते सूरज से पूछता है क्यूँ ज़ंग लगी है उसमें, क्यूँ नहीं प्यार से उसे कोई झुलाता न वो शाम रहा जब वो एक दुसरे की बाहों में घंटों तक झूलते और न वो सूरज जिस से वो एक दुसरे की नादान शिकायत करते || बस इक आहट से उनके, इस खँडहर में जान आये उनके छूने से जी उठे हर एक चीज़ हट जाये यादों का ये धुंधला पर्दा बस प्यार की एक बूँद के लिए तरस