शीशे की दरारों में फसे सूरज की किरणे
फर्श पे जमी हुई कीचड़ की दाग
हर चीज़ पे धूल का पर्दा बिछा हुआ
जैसे ओडी हो यादों की घूँघट इन सबने ||
मानो जैसे हर दीवार केहती कोई कहानी है
जैसे वो टूटा हुआ आइना छुपाती किसीकी जवानी है
उस झूले में जैसे दबी किसीकी मुस्कराहट है
सब कैद है बस इंतज़ार में एक उसके ||
वो सावन जब भीगते थे घंटो तक आँगन में
भागते थे एक दूसरे को छेड़ते पूरे घर में
अब न वो बारिश रही न वो मासूम छेड़कानी
बस रह गयी है तो ये फर्श पे जमी कीचड की दाग ||
वो आइना जिसने निहारा उनका खूबसूरत साथ
जो शर्माके नज़रे झुकाती जब वो पास उसके जाता
बालो में गजरा लगाता, काजल का टिका लगाता
इसे भी इंतज़ार है फिर से उस जवान महोब्बत का ||
वो झूला आज भी डूबते सूरज से पूछता है
क्यूँ ज़ंग लगी है उसमें, क्यूँ नहीं प्यार से उसे कोई झुलाता
न वो शाम रहा जब वो एक दुसरे की बाहों में घंटों तक झूलते
और न वो सूरज जिस से वो एक दुसरे की नादान शिकायत करते ||
बस इक आहट से उनके, इस खँडहर में जान आये
उनके छूने से जी उठे हर एक चीज़
हट जाये यादों का ये धुंधला पर्दा
बस प्यार की एक बूँद के लिए तरसे यहाँ का हर तिनका ||
कुछ दिनों के लिए ही तो गए थे वो
दिन महीनो में बदला और महीना सालों में
परदेस ही तो गए थे वो, फिर भूल कैसे गए
की यहीं पे बसा उनका हर वो हसीन पल है ||
आएंगे वो लौट कर; इन यादों को यकीन है
पत्तरों का ढेर नहीं, कभी खिलखिलाता घर था ये
कई लम्हों से रिश्तों से धडकनों से संजोया हुआ
इन यादों को यकीन है ; आएंगे वो लौट कर ||
-सरिता
02/18/2013
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