बातें वो जो रह गयी थी अधूरी वक़्त की सिलवटों में खो गये थे जो कभी ज़ुबाँ पे आज फिर आये वो किस्से अनसुनी लफ़्ज़ खर्च होते रहे तन्हाई में आज भी ... पल्कों पे जो एक बूंद आके रुकी थी गालों पे गिरे बारिश की बूंदों से मिल गयी यूँही बरसते बादल में दिल भीगा ऐसे की ज़ख्मों की गलियों से गुज़रा अश्कों का काफिला यूँही ... - सरिता Dated - 23rd July 2015
There is an inner self to everyone. You might speak, speak a lot; but yet there would be so many things unsaid, so many thoughts not shared, so many emotions hidden; well, here I am - where my silence speaks...