अपनी परछाई से पूछते रहे हम
आखिर कब खो दिया हमने खुद को
तुम तो साथ ही चलते हो हमेशा
फिर क्यों इत्तला नहीं किया हमे
दुनिया से मुतास्सिर हुए है इतने
कि बेरंग सी हो गयी है ज़िन्दगी
लोगों की झूठी उम्मीदों पे खरा उतरते उतरते
खुद से ही दूर होते चले गए हम
अगर ये ज़िन्दगी मेरी है और ये मौत भी
तो भला क्यों मैं मर मर के जियूं
दुनिया कि तसल्ली के लिए क्यूँ उस राह पे चलूँ
जहाँ परछाई भी मेरा साथ छोड़ दे
ना होते तुम बेज़ुबान इस कदर
तो शायद ना होते हम गुमराह इस क़दर
मेरे परछाई चलो फिर से साथ मेरे
मेरी आवाज़ बनकर, मेरी पेहचान बनकर ||
-सरिता
Dated - 8th July 2015
आखिर कब खो दिया हमने खुद को
तुम तो साथ ही चलते हो हमेशा
फिर क्यों इत्तला नहीं किया हमे
दुनिया से मुतास्सिर हुए है इतने
कि बेरंग सी हो गयी है ज़िन्दगी
लोगों की झूठी उम्मीदों पे खरा उतरते उतरते
खुद से ही दूर होते चले गए हम
अगर ये ज़िन्दगी मेरी है और ये मौत भी
तो भला क्यों मैं मर मर के जियूं
दुनिया कि तसल्ली के लिए क्यूँ उस राह पे चलूँ
जहाँ परछाई भी मेरा साथ छोड़ दे
ना होते तुम बेज़ुबान इस कदर
तो शायद ना होते हम गुमराह इस क़दर
मेरे परछाई चलो फिर से साथ मेरे
मेरी आवाज़ बनकर, मेरी पेहचान बनकर ||
-सरिता
Dated - 8th July 2015
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