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Showing posts from October, 2016

माज़ी

फ़िर छिड़ी गुफ़्तगू तन्हाइयों की, माज़ी से जब आज भी आँसू दोहराए गुज़रे कल के किस्से आज भी गूँजती है बरसों पुरानी हंसी आज भी ताज़ा है हर वो लब्ज़ सूखी आज भी झलकता है अश्क़ नमकीन यादों की आज भी जगती है आरज़ू बीती ज़िन्दगी की दर्द जब दिल में हद से ज़्यादा भर जाये तो बेहती है धारा बन नज़्मों की आँसू अब नहीं करते ज़ाया हम बस लफ़्ज़ों की माला बुनते है कोरे पन्नों पे माज़ी से शिकायत तो आज भी है पर शायद बेहद्द चाहत भी उसी से है !! - सरिता  Dated - 28th October 2016

ज़माने का अनोखा अंदाज़!

घंटों पत्तर के मूर्ति के सामने दिल का हाल बयान करते है हम ख़ामोशी में कभी सवालों के जवाब ढुंढते तो कभी गिले शिकवे करते है हम दिल को फिर भी सुकून मिलता है, की उसमें छिपा भगवान् सुन रहा है हमे और वहीँ इंसानो के इस मेहफिल में चाहे सीना छीर कर चिल्लाए हम या खून के आंसू रोये हम बेअसर हो गुज़रते है अपने ऐसे, मानो जैसे किसी शून्य में खड़े है हम यही तेरा अनोखा अंदाज़ ए दुनिया इंसान पत्तर बनते जा रहे है और पत्तर भगवान बनकर जीने का सहारा!! - सरिता  Dated - 26th October 2016

Be A.W.E.S.O.M.E instead!!

One of the famous series that's quite popular after Friends is How I met your mother?   A light mood comedy series that just brightens us up with good humor and laughter. Barney Stinson, an annoying character of this series is also a charm of the series. I never thought while I watched this series years back; that someday something he blabbers on screen would not only make sense but also motivate me. If you ever hear Barney's dialogues, it's difficult to say that those make sense at all, straight forward annoying yet funny lines.  But his style of calling himself "A.W.E.eee wait for it .. S.O.M.Eee" is something that we also must try once in a while. As I struggle to stand my ground in a whirlpool of problems today, I realized that to re-build confidence in self is so important.  It's very easy to get confused with what you want, when you start chewing in everyone's feedback/thoughts/reactions on your problems. You can't avoid sharing your prob...

मग़रूर नहीं..बस गुरूर है!!

मग़रूर है हम, केहते हैं वो अब कैसे बताएं की ये तो बस हमारा गुरूर है  टूट कर भी बिखरे टुकड़े नज़र नहीं आने देते  ये पत्थर दिली नहीं बस इसी गुरूर की मजबूरी है  अब तो हुज़ूर  हमारे साथ ही खाख होगा ये गुरूर हमारा - सरिता  Dated - 6th October 2016