घंटों पत्तर के मूर्ति के सामने दिल का हाल बयान करते है हम
ख़ामोशी में कभी सवालों के जवाब ढुंढते तो कभी गिले शिकवे करते है हम
दिल को फिर भी सुकून मिलता है, की उसमें छिपा भगवान् सुन रहा है हमे
और वहीँ इंसानो के इस मेहफिल में
चाहे सीना छीर कर चिल्लाए हम या खून के आंसू रोये हम
बेअसर हो गुज़रते है अपने ऐसे, मानो जैसे किसी शून्य में खड़े है हम
यही तेरा अनोखा अंदाज़ ए दुनिया
इंसान पत्तर बनते जा रहे है और पत्तर भगवान बनकर जीने का सहारा!!
- सरिता
Dated - 26th October 2016
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