पानी के कुछ छींटें गिरी मेरे पलकों पे
नज़र उठा के देखा आसमान कि ओर
तो काले बादल एक दूसरे से ठकरा कर गरज रहे थे
मानो जैसे मेरा उपहास कर रहे थे ।।
हाँ, और क्यूँ ना करें
जब ये चंचल हवा मुझे छेड़ने से नहीं थकती
जब चाँद अपने सितारों के संग हर रात मंद मंद मुस्काये
तो भला बादल और बारिश क्यूँ कतराए ।।
वक़्त भी कैसे सबका रंग बदलता है
जब अपने संग थे, तो यही बादल का गरजना सुरमई संगीत सा लगता
और बारिश में भीगना जैसे हर दिन होली खेलना
हवा का झोंका जैसे खुशियों की खुशबू फैलाती थी
चाँद अपनी चांदिनी टपकाता रात के अँधेरे में
और सितारे जैसे मेरे जगमगाते सपनों की दास्ताँ सुनाते ।।
कैसे अब सब कुछ बदल गया
क्यूँ अब ऐसे चुब्ने लगे है वो सब जो पेहले मेरी हंसी थी
क्या इनकी नियत बिगड़ गयी या फिर मेरे नज़रिए में ही भेद आ गया।।
वक़्त तूने कैसे सबका रंग बदल दिया
ना वो अपने रहे, ना ये चाँद सितारे बरसात मेरे साथी रहे
वक़्त हो सके तो फिर से इनका रंग बदल दे तू
हो सके तो मुझे वो पानी की होली लौटा दो
वो चांदनी की ठंडक , वो जगमगाते सपने लौटा दो
मेरे अपने ना सही, पर वो एहसास लौटा दो
वक़्त हो सके तो फिर से इनका खोया हुआ रंग लौटा दो ...
- - सरिता
well written Saru.
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