आँखें रोये पर आंसू मुस्कुराये
दर्द होंटों तक पहुँचते ही दबी सी मुस्कान बन गए
धड़कनो में छिपी सिस्कियों कि गूंज
किसीको ना कभी सुनाई दिया ना दिखायी!
वक़्त हर ज़ख्म को भरता चला गया
पर सभी गावों के निशाँ पीछे छोड़ गया
यादों के हर बरसात में ये निशान भीगे
और ऐसे ताज़ा हुए कि कभी ना भुलाये गए।
डर इन ज़ख्मों का नहीं हमें
ना ही इन निशानों का
और ना ही के कभी ये नासूर बन जायेंगे...
फ़िक्र है हमें तो इस बावरे मन्न का
जो कभी ये न समझ पाया कि
आखिर वो किन ज़ख्मों पर मरहम लगाये
और किन्हे भूलके आगे बढ़ चले।
ये ज़ख्म बोलते नहीं है, ना ही शोर मचाते है
पर यूँही अपनी चुप्पी से हमेशा एहसास दिलाते है
कि कभी वो ज़िन्दगी के खूबसूरत लम्हे थे
जो आज बस दिल के एक कोने में छिपी अनचाही सी चोट।
नफरत नहीं हमें इन ज़ख्मों से
आखिर इनका इसमें क्या दोष
कि सपनों के दर्पण टूटते चले गए
और शीशों के टुकड़े दिल में चुभे रेह गए॥
शायद ये ज़ख्म भी इंतज़ार कर रहे है
कि कब दिल के दरवाज़े खुलेंगे
और कब ये आज़ाद परिंदे से उड़ जायेंगे
इस घुटन से दूर सुकून की दुनिया में ॥
-सरिता
-Dated १५ Jan २०१४
दर्द होंटों तक पहुँचते ही दबी सी मुस्कान बन गए
धड़कनो में छिपी सिस्कियों कि गूंज
किसीको ना कभी सुनाई दिया ना दिखायी!
वक़्त हर ज़ख्म को भरता चला गया
पर सभी गावों के निशाँ पीछे छोड़ गया
यादों के हर बरसात में ये निशान भीगे
और ऐसे ताज़ा हुए कि कभी ना भुलाये गए।
डर इन ज़ख्मों का नहीं हमें
ना ही इन निशानों का
और ना ही के कभी ये नासूर बन जायेंगे...
फ़िक्र है हमें तो इस बावरे मन्न का
जो कभी ये न समझ पाया कि
आखिर वो किन ज़ख्मों पर मरहम लगाये
और किन्हे भूलके आगे बढ़ चले।
ये ज़ख्म बोलते नहीं है, ना ही शोर मचाते है
पर यूँही अपनी चुप्पी से हमेशा एहसास दिलाते है
कि कभी वो ज़िन्दगी के खूबसूरत लम्हे थे
जो आज बस दिल के एक कोने में छिपी अनचाही सी चोट।
नफरत नहीं हमें इन ज़ख्मों से
आखिर इनका इसमें क्या दोष
कि सपनों के दर्पण टूटते चले गए
और शीशों के टुकड़े दिल में चुभे रेह गए॥
शायद ये ज़ख्म भी इंतज़ार कर रहे है
कि कब दिल के दरवाज़े खुलेंगे
और कब ये आज़ाद परिंदे से उड़ जायेंगे
इस घुटन से दूर सुकून की दुनिया में ॥
-सरिता
-Dated १५ Jan २०१४
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