ऐसा क्यूँ ,
आँसू सिर्फ़ मैं बहा सकती हूँ,
पर वो नहीं?
आँसू सिर्फ़ मैं बहा सकती हूँ,
पर वो नहीं?
आख़िर वो भी तो मेरी तरह इन्सान है,
दिल उसका भी मेरी तरह परेशान है।
वो मर्द है तो क्या हुआ,
चोट उसको भी तो लगी है,
दर्द उसको भी तो होता है,
डर उसको भी तो सताता है।
चोट उसको भी तो लगी है,
दर्द उसको भी तो होता है,
डर उसको भी तो सताता है।
उसकी आँखे नम हो तो वो कमज़ोर क्यूँ?
मेरे लिए सहानुभूति फिर उसकी जगहँसाई क्यूँ?
मर्द होने का ऐसा भोज उसपे क्यूँ?
दुनिया में उसका ऐसा वजूद क्यूँ?
हम में फ़र्क़ होना जायज़ है
पर हम में फ़र्क़ करना क्यूँ?
उसका भावुक होना नाजायज़ क्यूँ?
नरम दिल होने पर भी सक्ती वो दिखाए क्यूँ?
उसकी भावनाओं के लिए अलग नियम क्यूँ?
दिल का हाल बयान करने पे ऐसे बंदिश क्यूँ?
मर्द को दर्द नहीं होता, आख़िर ऐसी सोच क्यूँ?
रहने दो इन्सान ही उसे,
आख़िर पत्थर बनाने की कोशिश क्यूँ?
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