क्यों आज बदले से मिज़ाज़ है इन धड़कनों की
जैसे कोई नई साज़िश रच रही हैं ये
क्यों आँखों में अजब सी बेताबी है
जैसे कोई खोयी परछाई दिख गयी है इन्हें
जो बिखरे अलफ़ाज़ कहे थे मेरे सपनों में तुमने
क्या हकीकत में उन्हें जोड़ पाओगे कभी
क्या तुम्हारा भी दिल हर वो साँसे गिनता है कभी
जो मेरी आहट सुन ने के तरस में लिए थे तुमने
ये उलझन ये बेचैनी ये कश्मकश
सिर्फ मेरे नहीं तुम्हारे भी तो हैं
ये इंतज़ार ये जस्बात ये चाहत
सिर्फ तुम्हारे नहीं मेरे भी तो हैं !!
-सरिता
Dated - 8th November 2016
जैसे कोई नई साज़िश रच रही हैं ये
क्यों आँखों में अजब सी बेताबी है
जैसे कोई खोयी परछाई दिख गयी है इन्हें
जो बिखरे अलफ़ाज़ कहे थे मेरे सपनों में तुमने
क्या हकीकत में उन्हें जोड़ पाओगे कभी
क्या तुम्हारा भी दिल हर वो साँसे गिनता है कभी
जो मेरी आहट सुन ने के तरस में लिए थे तुमने
ये उलझन ये बेचैनी ये कश्मकश
सिर्फ मेरे नहीं तुम्हारे भी तो हैं
ये इंतज़ार ये जस्बात ये चाहत
सिर्फ तुम्हारे नहीं मेरे भी तो हैं !!
-सरिता
Dated - 8th November 2016
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