ए वक़्त अपने कुछ लम्हे यहाँ भी बिखेर दे
तनहा खड़े है कुछ देर साथ तो चल ले
कभी डूबे तो कभी तैरे है तेरी लेहरों में
किनारा तो आज भी दूर तक नज़र कहीँ आता नहीं
मझदार में फसे तो है पर
मुस्कुराना अब भी हम भूले नहीं
तुझपे या है खुद पे इतना भरोसा
की टूट कर ही सही मंज़िल तो पाएंगे हम ज़रूर ...
- सरिता
Dated - 25th February 2017
तनहा खड़े है कुछ देर साथ तो चल ले
कभी डूबे तो कभी तैरे है तेरी लेहरों में
किनारा तो आज भी दूर तक नज़र कहीँ आता नहीं
मझदार में फसे तो है पर
मुस्कुराना अब भी हम भूले नहीं
तुझपे या है खुद पे इतना भरोसा
की टूट कर ही सही मंज़िल तो पाएंगे हम ज़रूर ...
- सरिता
Dated - 25th February 2017
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