महफ़िल वो सजी थी शाम ए ग़ज़ल की
बैठा वहाँ था मैं बस चंद कदम दूर उस से |
सजी थी खुद वो एक खूबसूरत ग़ज़ल की तरह
अकेली जगमगा रही थी वो किसी जुगनू की तरह |
शायरों का हर वो लब्ज़ जो गूंज रही थी वहां,
मैं पढता गया उन्हें उसके दिलकश चेहरे पर,
जैसे हर ग़ज़ल की रूह उसमें बसी थी |
कभी वो ओझल सी उसकी आंखें,
जिनके किनारे आ रूकती एक छोटी सी बूँद,
बयान करती, की वो दर्द महसूस किया है उसने भी |
कभी वो हलकी सी उसकी मुस्कान,
होंठों के किनारे आ रूकती,
इशारा करती, की वो हसीं पल जिया है उसने भी |
ना जाने कौन थी वो |
पर हर ग़ज़ल के हर एक जस्बात की गेहराई,
उसकी आंखो में झलक रही थी उस रात |
आज भी दिल याद करता है उस शाम को,
जैसे अल्फ़ाज़ों को मिल गया था एक हसीं चेहरा,
जो आज भी दे जाती है एक अजीब सी सुकून इस दिल को ।
सरीता
6th Feb 2020.
बैठा वहाँ था मैं बस चंद कदम दूर उस से |
सजी थी खुद वो एक खूबसूरत ग़ज़ल की तरह
अकेली जगमगा रही थी वो किसी जुगनू की तरह |
शायरों का हर वो लब्ज़ जो गूंज रही थी वहां,
मैं पढता गया उन्हें उसके दिलकश चेहरे पर,
जैसे हर ग़ज़ल की रूह उसमें बसी थी |
कभी वो ओझल सी उसकी आंखें,
जिनके किनारे आ रूकती एक छोटी सी बूँद,
बयान करती, की वो दर्द महसूस किया है उसने भी |
कभी वो हलकी सी उसकी मुस्कान,
होंठों के किनारे आ रूकती,
इशारा करती, की वो हसीं पल जिया है उसने भी |
ना जाने कौन थी वो |
पर हर ग़ज़ल के हर एक जस्बात की गेहराई,
उसकी आंखो में झलक रही थी उस रात |
आज भी दिल याद करता है उस शाम को,
जैसे अल्फ़ाज़ों को मिल गया था एक हसीं चेहरा,
जो आज भी दे जाती है एक अजीब सी सुकून इस दिल को ।
सरीता
6th Feb 2020.
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