आज फिर दिल गुज़रा यादों की गलियों से
ज़रा सी दस्तबरदारी का एहसास हुआ था इन्हें शायद
इसलिए ज़ेहन में इनका ज़िक्र आज हुआ फिर से
चंद लम्हों की ख्वाहिश हमसे अभ भी इन्हे है शायद ...
अश्कों के ज़ुबान नहीं होते कौन कहता है
अगर गौर करें तो ज़िन्दगी की दास्ताँ सुना दे शायद
ख़ामोशी शोर नहीं मचाती कौन कहता है
अगर ध्यान दे तो इनकी चीकों में दिल का आलम महसूस हो शायद ...
दिल के दरीचे से झांक के देखो तो
ख्वाबों के टुकड़े नज़र आएंगे शायद
क्या हुआ अगर ज़िन्दगी का मंज़र आज है हसीं तो
बीते किस्सों के रंजिश आज भी ताज़ा है कहीं शायद ...
अगर वक़्त भुला पाता हर वो एहसास ए गम
तो कोई फिर यादों का इख्तेयार ही ना करता शायद
हकीकत की मक़बूलियत से अगर होता दर्द कुछ कम
तो होते ना इतने शायर ना होती ग़ज़लों की मेहफिल शायद ...
- सरिता
३ मार्च २०१५
ज़रा सी दस्तबरदारी का एहसास हुआ था इन्हें शायद
इसलिए ज़ेहन में इनका ज़िक्र आज हुआ फिर से
चंद लम्हों की ख्वाहिश हमसे अभ भी इन्हे है शायद ...
अश्कों के ज़ुबान नहीं होते कौन कहता है
अगर गौर करें तो ज़िन्दगी की दास्ताँ सुना दे शायद
ख़ामोशी शोर नहीं मचाती कौन कहता है
अगर ध्यान दे तो इनकी चीकों में दिल का आलम महसूस हो शायद ...
दिल के दरीचे से झांक के देखो तो
ख्वाबों के टुकड़े नज़र आएंगे शायद
क्या हुआ अगर ज़िन्दगी का मंज़र आज है हसीं तो
बीते किस्सों के रंजिश आज भी ताज़ा है कहीं शायद ...
अगर वक़्त भुला पाता हर वो एहसास ए गम
तो कोई फिर यादों का इख्तेयार ही ना करता शायद
हकीकत की मक़बूलियत से अगर होता दर्द कुछ कम
तो होते ना इतने शायर ना होती ग़ज़लों की मेहफिल शायद ...
- सरिता
३ मार्च २०१५
Comments
Post a Comment