बेवज़ह जो गुनगुनाऊँ वो धुन हो तुम
बेफिक्र हो फ़िरने की चाह हो तुम
बेसब्र आँखों का वो इंतज़ार हो तुम
बेनाम रिश्ते की पेहचान हो तुम
बेवक़्त जो होंटों पे आये वो मुस्कुराहट हो तुम
बेफिक्र हो फ़िरने की चाह हो तुम
बेसब्र आँखों का वो इंतज़ार हो तुम
बेनाम रिश्ते की पेहचान हो तुम
बेवक़्त जो होंटों पे आये वो मुस्कुराहट हो तुम
बेबस अश्कों की सच्ची दास्ताँ हो तुम
बेईमान ख्वाबों की हकीकत हो तुम
बेइन्तेहाँ चाहत का टूटा शीशा हो तुम...
-सरिता
Dated - 19th Sep 2016
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